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कहावतें (लोकोक्तियाँ )-Hindi Proverbs



कहावत का अर्थ है ' कही बात ' इसका दूसरा नाम लोकोक्ति भी है |लोकोक्ति का अर्थ है ' लोगो में कही जानेवाली       उक्ति ' |
               कहावतों से कथन की पुष्टि होती हैं और भाषा -
 सौन्दर्य बढ़ जाता है |इनसे रचना चमक उठती है |
      नीचे कुछ कहावतें भावार्थ के साथ दी जाती हैं |आवश्यकतानुसार उनके प्रयोग दे दिए गए हैं |       

 अधजल गगरी छलकत जाए - ( ओछा मनुष्य घमण्ड करता है)  : प्रयोग-   सुशील  बतचीत के दौरान सबको उपदेश देता है ,जैसे वह बहुत बड़ा विद्वान हो |मगर सच्चाई तो यह है कि वह मैट्रिक फेल है | ठीक ही  कहा गया है - 'अधजल गगरी छलकत जाए ' |
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता -( बढ़ा काम एक आदमी से  नहीं हो सकता  ) :                                             प्रयोग - बेचन लड़की के बड़े कुन्दे को अकेले अपने सिर पर उठा लेना चाहता था, पर वह उसे हिला न सका, यह देखकर मैंने कहा -'  अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता'|
अन्धों में काना राजा= (मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति) 
प्रयोग- मेरे गाँव में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति तो है नही; इसलिए गाँववाले पण्डित अनोखेराम को ही सब कुछ समझते हैं। ठीक ही कहा गया है, अन्धों में काना राजा  |    
अन्धा क्या चाहे दो आँखें= (मनचाही बात हो जाना) 
प्रयोग- अभी मैं आफिस  से अवकाश लेने की सोच ही रही थी कि दोस्त ने  बताया कि कल आफिस मे  अवकाश है। यह तो वही हुआ- अन्धा क्या चाहे दो आँखें।
अपनी पगड़ी अपने हाथ= (अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।)
प्रयोग- राकेश  ने  शिक्षक  से कहा- आप यहाँ से चले जाइए, क्योंकि अपनी पगड़ी अपने हाथ होती है|

अंत भला सो सब भला - ( जिसका परिणाम अच्छा है, वहसर्वोत्तम     है) 
प्रयोग-  महेश ने कितना संघर्ष किया है, कितनी मुसीवतें झेलीं है | आखिरकार उसे सफलता मिल ही गई |चलो अंत भला सो सब भला |
अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना= (मूर्खों को सदुपदेश देना या अच्छी बात बताना व्यर्थ है।)
प्रयोग- मुन्ना को समझाना तो अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना वाली बात है।
अंधी पीसे, कुत्ते खायें-(मूर्खों की कमाई व्यर्थ में नष्ट हो जाती है।)
प्रयोग- रजनी अपने आपको बुद्धिमान समझती है, किन्तु उसका काम अंधी पीसे, कुत्ते खायें वाला है।
अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा- (जहाँ मालिक मूर्ख हो वहाँ सद्गुणों का आदर नहीं होता।)
प्रयोग- मनोज की कंपनी में चपरासी और मैनेजर का वेतन बराबर है, वहाँ तो कहावत चरितार्थ होती है कि अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा।
अंधेर नगरी चौपट राजा -(अयोग्य शासक का कुप्रशासन) 
प्रयोग -  आजकल नेता अपनी स्वार्थ के लिए वोट खेलतेे है  | इसलिए जनता बहुत दुखी रहती है | किसी ने ठीक ही कहा है अँधेर नगरी चौपट राजा |  
अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे-(बुद्धिहीन, किन्तु धनवान)
प्रयोग- सेठ जी तो अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे हैं।
अक्ल बड़ी या भैंस- (बुद्धि शारीरिक शक्ति से अधिक श्रेष्ठ होती है। )
प्रयोग- ये कहानी तो सबने पढ़ी ही होगी कि खरगोश ने अपनी अक्ल से शेर को कुएँ में कुदा दिया था। यह कहावत मशहूर है कि अक्ल बड़ी या भैंस।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू- (अपनी बड़ाई या प्रशंसा स्वयं करने वाला)
प्रयोग-रीमा हमेशा अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनता है।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है- (अपने घर या गली-मोहल्ले में बहादुरी दिखाना)
प्रयोग- तुम अपने मोहल्ले में बहादुरी दिखा रहे हो। अरे, अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है।

आई मौज फकीर को, दिया झोंपड़ा फूँक- (वैरागी स्वभाव के पुरुष मनमौजी होते हैं।) 
प्रयोग- उस  वैैैरागी ने  जब अपनी सारी सम्पत्ति गरीबों को दे दी, तब उसकी प्रशंसा करते हुए लोगों ने कहा- आई मौज फकीर को, दिया झोंपड़ा फूँक।
आम के आम गुठलियों के दाम- (अधिक लाभ)
प्रयोग- सब प्रकार की पुस्तकें 'साहित्य भवन' से खरीदें और पास होने पर आधे दामों पर बेचें। 'आम के आम गुठलियों के दाम' इसी को कहते हैं।
आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे-(अधिक लालच करना बुरा होता है)
प्रयोग-  सुरेश अधिक वेतन के चक्कर में अपनी  छोटी-सी दूूकान छोड़ दी और अब उसकी वो नौकरी भी छूट गई; ये तो वही कहावत हो गई कि 'आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे'।
आप काज, महा काज-(अपना काम स्वयं करने से ठीक होता है।)
प्रयोग- करीम अपना काम दूसरों पर नहीं छोड़ता। उसे स्वयं करता है, क्योंकि उसका विश्वास है कि 'आप काज, महा काज'।
आप भला तो जग भला- (दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए तो दूसरे भी अच्छा व्यवहार करेंगे)
प्रयोग- तुम बहुत ईमानदार हो , इसलिए सबको ईमानदार समझते हो। इसलिए कहा जाता है- आप भले तो जग भला।

इधर कुआँ और उधर खाई-(हर तरफ विपत्ति होना)
प्रयोग-  कुछ न बोलो तो भी बुराई है और कुछ बोलो तो  भी; ऐसे में मेरे सामने इधर कुआँ और उधर खाई है।
इन तिलों में तेल नहीं निकलता-कंजूसों से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता।
प्रयोग- तुम यहाँ व्यर्थ ही आए हो मित्र! ये तुम्हें कुछ नहीं देंगे- इन तिलों में से तेल नहीं निकलेगा।


इस हाथ दे, उस हाथ ले- (लेने का देना)
प्रयोग- प्रिंसीपल ने मेरे पिता जी से कहा, 'आप मेरे भाई को अपने ऑफिस में, नौकरी पर रख लीजिए; मैं आपके बेटे को अपने स्कूल में एडमीशन दे दूँगा।' इसे कहते हैं इस हाथ दे, उस हाथ ले।
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया-(संसार में सभी एक जैसे नहीं हैं- कोई अमीर है, कोई गरीब)
प्रयोग- अमीर-गरीब हर जगह होते हैं। सब ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया है।

उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई-(इज्जत जाने पर डर किसका?)
प्रयोग- राजू को  लोगों ने बिरादरी से निकाल दिया है अब वह खुलेआम आवारागर्दी कर रहा है- 'उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई'।
उल्टे बांस बरेली को-(जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो, उसे वहां ले जाना)
प्रयोग-  शामू अनाज  जब शहर खरीदकर गाँव ले जाने लगा तो उसके पिताजी ने कहा कि ये तो उल्टे बांस बरेली वाली बात है। यहाँ क्या अनाज की कोई कमी है।


उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे= (अपराधी निरपराध को डाँटेे)
प्रयोग- एक तो पूरे वर्ष पढ़ाई नहीं की और अब परीक्षा में कम अंक आने पर अध्यापिका को दोष दे रहे हैं। यह तो वही बात हो गई- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।

उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई= (इज्जत जाने पर डर किसका?)
प्रयोग- जब लोगों ने उसे बिरादरी से ख़ारिज कर दिया है अब वह खुलेआम आवारागर्दी कर रहा है- 'उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई'।
उल्टे बांस बरेली को= (जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो, उसे वहां ले जाना)
प्रयोग- जब राजू अनाज शहर से गाँव ले जाने लगा तो उसके पिताजी ने कहा कि ये तो उल्टे बांस बरेली वाली बात है। यहाँ क्या अनाज की कोई कमी है।
उसी का जूता उसी का सिर- (किसी को उसी की युक्ति या चाल से बेवकूफ बनाना)
प्रयोग- जब चोर पुलिस की बेल्ट से पुलिस को ही मारने लगा तो सबने यही कहा कि ये तो उसी का जूता उसी का सिर वाली बात हो गई।
उद्योगिन्न पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी-(उद्योगी को ही धन मिलता है।)


ऊँची दुकान फीके पकवान- (जिसका नाम अधिक हो, पर गुण कम हो)
प्रयोग- सूूूूरेश केे कंपनी का नाम ही नाम है, गुण तो कुछ भी नहीं है। बस 'ऊँची दुकान फीके पकवान' है।
ऊँट के मुँह में जीरा- (जरूरत के अनुसार चीज न होना)
प्रयोग- कालिया को खाने में चावल रोटी सबकुुछ चाहिए ,लेकिन उसे सिर्फ एक रोटी दी |यह तो ऊँट के मुँह में जीरे वाली बात हुई।
ऊधो का लेना न माधो का देना- (केवल अपने काम से काम रखना)
प्रयोग- महेश केे पिता अपनी कारोबार रूपया मे लगा रहता है अपने बेटे की भविष्यत  से उन्हें कोई चिन्ता ही नहीं - ऊधो का लेना न माधो का देना।
ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी- (बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा) 
प्रयोग- ये आदमी दिन में साधु महात्मा  बनकर घूमते रहते हैं, रात को चोरी  करनेे निकलता है इसेे कहते है , ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी |

एक अकेला, दो ग्यारह-(संगठन में शक्ति होती है)
प्रयोग- पिताजी ने दोनों बेटों को समझाते हुए कहा, यदि तुम दोनों मिलकर व्यापार करोगे तो दिन-दूनी रात चौगुनी उन्नति होगी। हमेशा याद रखना, 'एक अकेला, और दो ग्यारह' होते हैं।

एक तंदुरुस्ती, हजार नियामत-(स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है)
प्रयोग- आप सभी को रोज प्राणायाम करना चाहिए, प्राणायाम करते रहोगे तो सेहत अच्छी रहेगी। सेहत अच्छी होगी तो जीवन में कुछ भी कर सकोगे, एक तंदुरुस्ती, हजार नियामत।
एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय-(किसी कार्य को संपन्न कराने के लिए किसी एक समर्थ व्यक्ति का सहारा लेना अच्छा है बजाए अनेक लोगों के पीछे भागने के)
प्रयोग- अगर प्रमोशन चाहिए तो मंत्रीजी को पकड़ लो, इन अधिकारियों के पीछे भागने से कोई लाभ नहीं। किसी ने ठीक कहा है एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय'।
एक ही थैली के चट्टे-बट्टे- (एक ही प्रवृत्ति के लोग)
प्रयोग- अरे भाई, रोहन और मोहन पर विश्वास मत करना। दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। समझ लो एक नागनाथ है, तो दूसरा साँपनाथ।
ऐरा-गैरा नत्थू खैरा-(मामूली आदमी)
प्रयोग-  रमेश के घर के अन्दर  कोई 'ऐरा-गैरा नत्थू खैरा' नहीं  जा सकता।
ऐरे गैरे पंच कल्याण- (ऐसे लोग जिनके कहीं कोई इज्जत न हो)
प्रयोग- पंचों की सभा में ऐरे गैरे पंच कल्याण का क्या काम!
'ऐसो को प्रकट्यो जगमाँही, प्रभुता पाय जाहि मदनाहीं'-(जिसके पास धन-संपत्ति होती है, वह अहंकारी होता है)
प्रयोग- वाणीकांत की जबसे एक करोड़ की लॉटरी लगी है, धन के नशे में किसी को कुछ समझता ही नहीं। ऐसे लोगों के लिए ही तुलसीदास ने कहा है- 'ऐसो को प्रकट्यो जगमाँही, प्रभुता पाय जाहि मदनाहीं।'
ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर-(कष्ट सहने के लिए तैयार व्यक्ति को कष्ट का डर नहीं रहता।)
प्रयोग- बेचारी शांति देवी ने जब ओखली में सिर दे ही दिया है तब मूसलों से डरकर भी क्या कर लेगी!
ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती-(किसी को इतनी कम चीज मिलना कि उससे उसकी तृप्ति न हो।)
प्रयोग- किसी के देने से कब तक गुजर होगी, तुम्हें यह जानना चाहिए कि 'ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती'।
ओछे की प्रीति, बालू की भीति-(दुष्ट का प्रेम अस्थिर होता है)
प्रयोग- भई शंकर! दयाराम जैसे घटिया आदमी से अब भी तुम्हारी पटती है?' शंकर बोला, 'नहीं चाचाजी! मैंने उसका साथ छोड़ दिया। अब मैं समझ चुका हूँ कि ओछे की प्रीति, बालू की भीति के समान होती है'।


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